आखिर अपने बच्चो को क्यों भेजे स्कूल हम
जब पाँचवी के बच्चो को नहीं मालूम की कौन थे महात्मा गांधी ...?
रामकिशोर पंवार
'' दे दी हमें आजादी बिना खडग़ - बिना ताल , साबरमति के संत तूने कर दिया कमाल ........! '' जागृति फिल्म का यह गाना सालाना शिक्षा सत्र में 2 अक्टुबर गांधी जयंती , 26 जनवरी स्वाधिनता दिवस , 30 जनवरी शहीद दिवस एवं 15 अगस्त आजादी की वर्षगांठ पर याने कुल मिला कर चार बार शासकीय कार्यक्रमो में अनिवार्य रूप से अवश्य बजाया जाता है। कक्षा पहली से लेकर पाँचवी तक पढऩे जाने वाले बच्चो को माता - पिता - नाते - रिश्तेदार तक एक रूपये से लेकर सौ रूपये तक देते है। उसकी जेब रूपयो और सिक्को से भरी होने के बाद भी उस कक्षा पाँचवी में पढऩे वाले बच्चो को जब यह तक पता नहीं कि सिक्के में - रूपये में - गांव - गली - मोहल्ले - सार्वजनिक स्थल पर हाथ में लकड़ी थामे - लंगोट धारक व्यक्ति कौन है ......? तब ऐसे स्कूलो में बच्चो को सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूल चले हम का नारा देकर स्कूल भिजवाने का क्या औचित्य.......? मध्यप्रदेश में सर्व शिक्षा अभियान के तीह गांव - गांव - गली - गली में आंगनवाड़ी से लेकर प्रायमरी स्कूल खोलने वाले सरकारी तंत्र के मँूह पर करारा तमाचा मारती यह हकीगत आजादी की 61 वीं साल गिरह के एक सप्ताह पूर्व सामने आई । देश की पहली महिला राष्टï्रपति महामहिम श्रीमति प्रतिभाताई देवी सिंह शेखावत पाटील की ससुराल अमरावती जाने वाले बैतूल - अमरावति राष्टï्रीय राजमार्ग पर स्थित बैतूल जिले की भैसदेही तहसील की गुदगांव सहित एक दर्जन उन आदिवासी बाहुल्य एवं सामान्य वर्ग की आरक्षित ग्राम पंचायतो के आधा दर्जन से अधिक सरकारी एवं गैर सरकारी प्रायमरी स्कूलो के बच्चो के नैतिक एवं बौद्घिक ज्ञान को ढुढंने गये पत्रकारो के एक दल के सामने आई इस कड़वी सच्चाई का माकूल जवाब किसी के पास नहीं है। सरकारी स्कूलो में भर्राशाही के चलते कई पालक अपने बच्चो को प्रायवेट स्कूलो में पढऩे भेजते है लेकिन गुदगांव के उस प्रायवेट स्कूल की प्रायमरी तक शिक्षा देने का दांवा करने वाली शिक्षण संस्थान के पास भी इस प्रश्र का उत्तर नहीं था कि उनके स्कूल के बच्चो को यह क्यों नहीं पता कि आखिर महात्मा गांधी कौन थे.....? कुंबी समाज बाहुल्य इस गांव के सरकारी भवन में लगने वाले प्रायमरी स्कूल की केजी वन से स्टैण्र्ड फाइव तक के किसी भी बच्चे ने नहीं बताया कि गांधी जी कौन थे.....? इससे बड़ी शर्मनाक बात और क्या होगी कि इस स्कूल की संचालिका और शिक्षिकाओं से जब पत्रकारो के दल का प्रतिनिधित्व कर रहे है बैतूलवी पत्रकारिता के पितृ पुरूष एवं जिला प्रेस क्लब बैतूल के अध्यक्ष हारूण भाई धुआँवाला ने जब इस सवाल का जवाब चाहा कि '' क्या उनके स्कूल में गांधी जयंती या शहीद दिवस नहीं मनाया जाता.....?'' इसी तरह गुदगांव आरटीओ बेरीयर के पास स्थित सरकारी प्रायमरी स्कूल के बरसो से टिके प्रधान पाठक से सवाल किया कि ''उनके प्रायमरी स्कूल के बच्चो को आखिर क्यों नहीं मालूम की महात्मा गांधी आखिर कौन थे.....?'' सवाल का जवाब कुछ अजीबो - गरीब देते हुये प्रधान पाठक ने दो कमरे में लगने वाले पहली से लेकर पाँचवी तक के स्कूल के बच्चो को पढ़ाना अपनी नौकरी या मजबुरी नहीं बल्कि शौक बताया....... आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले इस युवक का कहना था कि '' वह घर से सम्पन्न है हजार दो हजार की नौकरी वह कोई पेट के लिए नही बल्कि अपने शौक और मास्टरी रौब को झाडऩे के लिए कर रहा है .......!'' एक दर्जन से अधिक पत्रकारो के इस दल के सामने ग्रामिण भारत की शिक्षा व्यवस्था की पोल जब परत दर परत खुलने लगी तो अनेको रहस्यो का पर्दाफाश हुआ। भैसदेही - आठनेर तहसील के महाराष्ट की अंतरराज्यीय सीमा से लगे इन गांवो की शिक्षा पूर्ण तरह खण्डहर की शक्ल ले चुकी है। बैतूल से जाते समय पत्रकारो के दल ने जिन गांवो के स्कूली बच्चो का नैतिक एवं बौद्घिक ज्ञान लिया उन गांवो में खेड़ी , झल्लार , सिमोरी , सराड़ , केरपानी , बोरगांव , मच्छी , झल्लार , विजयग्राम , सांवलमेढ़ा , कोथलकुण्ड , बोरकुण्ड , खोमई , धाबा , सातनेर , हिवरा , चिचोला ढाना , बडग़ांव , नवापुर , गुणखेड़ , वडाली , जामगांव , धामणगांव , ठेसका , मालेगांव , बरहापुर , सिरजगांव , भैसाघाट , महारपानी , राक्सी , धनोरा , धामोरी ,का नाम प्रमुख है। सबसे आश्चर्य जनक बात जो देखने को मिली वह यह थी कि बच्चो को यह नहीं मालूम कि भगवान राम राजा थे या प्रजा.....? विद्या की देवी सरस्वती की पूजा कब और क्यो होती है......? बैतूल जिले का कलैक्टर कौन है.......? जिले का सासंद कौन है.......? कुछ तो ऐसे भी प्रायमरी स्कूल मिले जहाँ पर प्रधान पाठको तक को यह नहीं मालूम कि प्रदेश का स्कूली शिक्षा मंत्री कौन है......? ग्राम पंचायत राक्सी में गांव का सरपंच कौन है इस बात का पता गांव के स्कूल के प्रधान पाठक को नहीं मालूम......? प्रधान पाठक इस अज्ञानता का सालीट जवाब देते है कि जब सरपंच की जगह उप सरपंच ही गांव की पूरी बागडोर चला रहा हो तब मुझे क्या गांव के अधिकांश लोगो को भी नही मालूम कि गांव का सरपंच कौन है.....? प्रायमरी पाठशाला झल्लार की कन्याशाला की प्रधान पाठक मानती है कि जो बौद्घिक ज्ञान उन्होने पाया था आज वह वे इन बच्चो को नहीं दे पा रहे है। मास्टरो को सरकार ने चपरासी बना रखा है। प्रदेश की अधिकांश योजनाये लगता है मास्टरो के भरोसे ही चल रही हो.....? देश के प्रधानमंत्री - राष्टपति का नाम तो पुछना ही मूर्खता होगी क्योकि जिन प्रायमरी के स्कूलो के बच्चो को आज तक यह नहीं पता कि बैतूल जिले में कितनी तहसील है.....? उनका विधायक कौन है........? कई स्कूल के बच्चो को तो अपने शिक्षक - शिक्षिका का तक नाम तक नहीं मालूम ऐसे स्थिति में पूरे गांव की ही नही जिले एवं प्रदेश तथा देश के नैतिक एवं बौद्घिक स्तर का पता खुदबखुद लग जाता है।
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