Wednesday, December 15, 2010

                            मोक्ष दायनी - पाप नाशनी -जीवन दायनी - संकट हारनी मां सूर्य पुत्री ताप्ती
                                                  लेख - रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला''
जब भी कोई नदियों के बारे में बात करता है तो गांव - नदी - नाले - खेत - खलिहान- कुयें - बावली - झरनो और पोखरो की बरबस याद आ जाती है. देश ही नहीं बल्कि विदेशो की कई प्राचिन सभ्यतायें और उसका इतिहास भी इन्ही नदियों से जुड़ा होता है. बैतूल जिले का मूल नाम क्या था यह तो कोई भी दावे के साथ इसलिए नहीं कह सकता है क्योकि हिन्दु - सनातनी - आर्य जिन चार युगो की बाते करते है उनका बैतूल जिले से कोई न कोई प्रमाणिक रिश्ता - नाता रहा है. बैतूल जिले के मुलताई के पास जिस ऋक्षि  पर्वत का उल्लेख पढऩे को मिलता है.वह प्राचिन काल में मुलताई नगर के सर्किट हाऊस के पास स्थित टेकडी को कहा जा सकता है जहां से ताप्ती एवं वर्धा नदी का उदगम हुआ था. वैस तो लोग वर्धा का उदगम ग्राम खैरवानी के तालाब को मानते है. इस स्थान पर स्थित पेड़ो का पानी आज भी दो अलग - अलग दिशाओं में बहता हुआ अलग - अलग नदियों एवं महासागरो में मिलता है. मूलत: मां ताप्ती का जन्म स्थान ताप्ती के तालाब को ही माना गया है लेकिन भगौलिक परिवर्तन के चलते स्थान के मूल रूप में परिवर्तन होना स्वभाविक है. बैतूल जिले में मुलताई जिसे मुलतापी भी कहा गया है इस पावन भूमि के रेल्वे स्टेशन के पास ठीक नारद टेकडी के सामने छोटे से तालाब से मां ताप्ती की मूल उत्पति मानी गई है. मां ताप्ती का जन्म स्थान को लेकर थोड़े बहुंत मतभेद एवं मनभेद स्वभाविक है क्योकि प्रकृति में आने वाले परिवर्तनो से दशा और दिशा बदलती रहती है. देश के पश्चिमी मुखी नदियों में नर्मदा एवं ताप्ती दोनो ही अरब सागर की खंभात की खाड़ी में मिलती है. सूर्य पुत्री मां ताप्ती का यूं तो मेरा बचपन से नाता है क्योकि मैं पहली कक्षा मुलताई नगर की टेकड़ी वाली प्रायमरी शाला में पढ़ा हँू. प्रायमरी स्कूल से पुलिस लाइन में चाचा के घर तक आते समय ताप्ती के तालाब में सोने की नथ पहनी मछली को पकडऩे के चक्कर में घंटो तालाब के पानी में दाना डाल कर मछली को पकडऩे की चाहत में रहते थे. मुझे ठीक से तो नहीं पर यह याद जरूर है कि उस दौर में काली जी के मंदिर का निमार्ण कार्य शुरू हो रहा था. गौ मुख से निकली ताप्ती जी एक जलधारा को अपनी अंजुली में लेकर उसका पान करना भी बचपन की भूली - बिसरी यादो का एक हिस्सा है. मां सूर्य पुत्री ताप्ती के उस तालाब से नाता टूटा तो बारहलिंग से जुड़ गया. आज भी बारहलिंग को शिवधाम के रूप में स्थापित करवाने की दिशा में एक मुहिम की शुरूआत मां सूर्य पुत्री ताप्ती का नीर को जन - जन तक पहुंचाने के लिए उनकी महिमा का बखन भी जरूरी है. लोग गंगा को याद करते है लेकिन आदि गंगा मां ताप्ती को इसलिए भूल गये क्योकि अकसर श्राद्ध से लेकर हर पूजन के कार्यो में तथाकथित मंत्रो के उच्चारणों मे गंगा प्रेमी पंडितो एवं पण्डो ने गंगा को इस कदर महिमा मंडित किया कि उसके सामने यमुना - गोदावरी - नर्मदा - कावेरी - ताप्ती - क्षिप्रा तक का पौराणिक महत्व बौना साबित हो गया. यदि हम पुराणो के ही पन्नो को ही पलटने का काम करे तो पता चलता है कि जब भगवान विश्वकर्मा की मदद से जगतपिता ब्रहमा जी ने सूर्य पुत्र मानव को धरती पर भेजा ताकि वह मानव समाज की स्थापना करे. इसी तरह अपने पुत्र अश्विनी कुमार को वैद्य , शनि को न्याय , यम को यमलोक का स्वामी बनाया. दोनो पुत्री यम एवं ताप्ती में सबसे पहले अपने तप को जल जीव - प्राणी - पशु - पक्षी को तप से बचाने एवं उनके प्यासे कंठो को तृप्त करने के लिए तापी - तपती - ताप्ती के नामो से प्रसिद्ध बिटिया को जलधारा के रूप में ऋक्षि पर्वत से बहने का आदेश दिया. आज बैतूल जिले में लगभग 250 किलो मीटर का सफर तय करने वाली कुल 750 किलो मीटर लम्बा सफर तय करके खंभात की खाड़ी में मिल जाती है. देव कन्या के रूप धरती पर अवतरीत नदियों में शिव कन्या नर्मदा , सूर्य पुत्री यमुना - ताप्ती का उल्लेख पुराणो में पढऩे को मिलता है. देश की प्रमुख सभी पवित्र नदियों में केवल ताप्ती में ही तीन दिनो में मोक्ष की प्राप्ति होती है. अस्थियां के इस नदी में तीन दिनो के अंदर घुल जाने के बाद मृत आत्मा का सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है. जीवन दायनी मोक्ष दायनी मां ताप्ती के जल का प्रभाव यह है कि वह सतपुड़ा एवं मेकल की पहाडिय़ो में सबसे तेज धारा के रूप में बहती हुई अपने जल में जंगली जड़ - बुटियो के अलावा अपने पावन जल में ऐसे कई अदृश्य बीमारी मुक्त करने वाली औषधियों को लेकर बहती है. दुसरी नदियों का मटमैला - प्रदुषित पानी को स्वच्छ होने में घंटो लग जाते लेकिन बहती एवं एकत्र ताप्ती जल को शुद्ध होने में मात्र कुल ही मिनट लगते है. ताप्ती जल की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका पानी सालो तक रहने के बाद भी किसी भी प्रकार का गंध नहीं मारता है. ताप्ती नदी में पोखर - डोह - जल प्रताप - झरनो के मिलने के कई नज़ारे बरसात के दिनो मे देखने को मिलते है. ताप्ती नदी के बहते जल में भंवरे बनते है इस कारण कोई तैराक चैलेंज के साथ ताप्ती नदी के इस छोर से उस छोर जाने की हिमाकत नहीं कर सकता यदि वह ऐसा करता है तो उसे अपनी जान को गवाना पड़ सकता है लेकिन ताप्ती के किनारे बसे गांवो के छोटे - छोटे बालक - बालिकायें बिना किसी डर एवं झिझक के नदी के इस छोर से उस छोर तैरते चले जाते है. पूरी दुनिया में मात्र सूर्य पुत्री ताप्ती ही एक ऐसी नदी है जो कि भीषण से भीषण गर्मी में आज तक कभी भी सुखी नहीं है. यह विश्व की एक मात्र ऐसी नदी है जो कि ऊपरी और नीचली सतह में सदैव बहती रहती है. ताप्ती नदी के पत्थरो का वजन एक समान नहीं होता तथा इन पत्थरो का रंग - रूप आकार भी भिन्न होता है. सबसे आश्चर्य की बात यह है कि गर्मी के दिनो में अन्य पत्थरो की अपेक्षा ताप्ती नदी के पत्थर कम गर्म होते है. ताप्ती नदी की एक विशेषता यह भी है कि वह पश्चिम दिशा से पूर्व की ओर बहती हुई दिखाई देती है. मोक्ष दायनी मां ताप्ती के बारे में यह भी कहा जाता है कि ताप्ती के किनारे सर्वाधिक  शिव लिंग मिलेगें जिसके पीछे इस नदी के किनारे असुरी एवं दैविय शक्तियों की देवाधिदेव महादेव को प्रसन्न करने के लिए की गई घोर तपस्या भी प्रमुख कारण है. महा पंडित रावण के बलशाली पुत्र मेघनाथ ने ताप्ती तट पर ही भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करके अनेको शक्तियां प्राप्त की थी. ताप्ती के किनारे ही रावण पुत्र मेघनाथ का राज्य एवं आदिवासियों द्वारा उसकी पूजा के पीछे का प्रमुख कारण उसकी शिव भक्ति एवं अपने राजा के प्रति मान - सम्मान - प्रेम - समपर्ण एवं उसके देवता तुल्य मान कर उसकी पूजा अर्चना करना भी आज भी देखने को मिलता है. सूर्य पुत्री ताप्ती के बारे में पुराणो में खास की स्कंद पुराण - वराह पुराण - सूर्य पुराण - शनि पुराण - महा भारत - रामायण तक में उल्लेख पढऩे को मिलता है. जैन मुनि विशुद्ध महाराज भी ताप्ती की जन्म स्थली बैतूल जिले को देव भूमि मानते है. उनका दावा है कि भगवान श्री राम वनवास के दौरान ताप्ती के तट से इस पार से उस पार होने के लिए बारहलिंग नामक स्थान पर आकर रूके थे. ताप्ती की महिमा को संत गुरू नानक देव - तात्या टोपे - महात्मा गांधी ने भी नमन कर उसकी पूजा - अर्चना की है. ऐसा कहा जाता है कि उतर भारत के पंडितो ने गंगा के महात्म को कम न हो इसके लिए ताप्ती की महिमा का बखान करना ही छोड़ दिया. आज जीवन दायनी मां ताप्ती का जन्मोत्सव मध्यप्रदेश सरकार को देर - सवेर याद आया इसके लिए वह बधाई की पात्र है.  मां ताप्ती के श्री चरणो में नमन - वंदन - अभिनंदन है.
इति,

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