Saturday, December 25, 2010

Ek Gaw Jaha

                                             एक गांव ऐसा भी जहाँ
                                  40 में से 39 बच्चे शराब पीकर आते-!
                                                  रामकिशोर पंवार
आजकल समाचार पत्रो में पहले पेज की स्टोरी बनने की तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया में दिन भर सुर्खियों में छाये रहने की कुछ तथाकथित समाजसेवियों की अभिलाषा अकसर बेहद शर्मनाक परिणाम लेकर आती है . ऐसा ही कुछ बैतूल जिले की आमला जनपद के अन्तगर्त आने वाले ग्राम झीटापाटी में देखने को मिली . बैतूल जिला मुख्यालय से मात्र 23 किलो मीटर की दूरी पर भोपाल - नागपुर नेशनल हाइवे 69 पर बसा आदिवासी बाहुल्य गांव झीटापाटी को अमीरो की तथाकथित सेवाभावी इंटर नेशनल संस्था लांयस क्लब एवं लायनेस क्लब ने गोद में लिया। बदले में इस गांव के कथित शराबी बच्चो को इस लत से छुड़वाने के लिए बैतूल के एक दवा विके्रत्रा एवं समाजसेवक कहलाने वाले छबिल काका लायंस क्लब का गर्वनर का तमगा मिला साथ मिला विदेश यात्रा का सुख। काका को मिले इस सम्मान की पोल काका के लांयस क्लब के भतीजो ने ही खोल कर उन्हे शर्मसार करना चाहा लेकिन धन्नासेठो और इस तरह के फर्जी समाजसेवियो के पास शर्म नाम की चीज कहां रहती यदि होती तो एक गांव और उसका बचपन इनकी महत्वाकांक्षा के आगे बदनाम न होता. सापना बांध की पत्थरो और बोल्डरो की अथाह कंकर पत्थर वाली कंटीली झाडिय़ो वाली पहाँडियों पर बसे आदिवासी बाहुल्य गांव झीटापाटी में रहने वाले ग्रामिणो का मूल कार्य आसपास के पत्थर गिटटï्ी तोडऩे वाले थ्रेसरो पर काम करना , उनके लिए नदी - नालो - पहाडिय़ो से गिटटी - पत्थर बोल्डर लाना तथा पैतृक एवं सम्पन्न किसानो के लिए खेती - बाड़ी का काम करना होता है . आदिवासी समाज में ऐसी मान्यताएँ जिसके अनुसार वे खुशी हो या गम हर काम में महँुआ की कच्ची शराब तथा गेहँू- मक्का की पेज पीते है . आसपास महँुआ के पेड़ों से महँुआ एकत्र करके उससे साल भर अपने हाथ से कच्ची शराब बना कर पीने वाले ग्रामिण भी इस $खबर से बेहद नाराज जिसमें यह लिखा गया है कि उनके बच्चे शराब पीकर स्कूल पढने जाते है. अपने बच्चो के बारे में अपमान जनक की बाते लिखे जाने एवं उसके प्रचार - प्रसार के बाद लोगो की जागी उत्सुकता के बाद लोगो की जिझासा का केन्द्र बने इस गांव में हर रोज कोई न कोई पेन कागज और कैमरा लेकर आ टपकता है। गांव में लोगो के जमावड़े के चलते उनका पूरा गांव और समाज ही बदनाम हो गया है . यहाँ यह उल्लेखनीय है कि राष्टरीय राजमार्ग 69 पर बसे इस आदिवासी बाहुल्य गांव के बारे में भोपाल से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक समाचार पत्र ने पहले पेज पर कवर स्टोरी छापी जिसमें उस गांव के 40 में से 39 स्कूली बच्चो को बचपन से शराब पीने तथा शराब पीकर स्कूल आने की बाते लिखी गई . इन बच्चो की शराब पीने की लत छुड़वाने के नाम पर बैतूल जिले के एक इंटरनेशनल लायंस क्लब के पदाधिकारी लायन छबिल दास मेहता और उस गांव के शिक्षक सुनिल तरकसवार को राष्टï्रीय पर्व पर जिला प्रशासन द्घारा सम्मानीत किया गया.राष्टï्रीय राजमार्ग 69 से लगे लगभग सौ - डेढ़ सौ की आबादी वाले झीटापाटी गांव की शासकीय प्राथमिक पाठशाला में दो शिक्षक पदस्थ है जिसमें एक स्वंय उस पाठाशाला का प्रधानपाठक तथा दुसरा उसका सहायक उक्त दोनो ही शिक्षक बैतूल से आना - जाना करते है . इन्ही में से एक बच्चो के भविष्य को बनाने वाले इसी प्राथमिक पाठशाला के प्रधान पाठक सुनील तरकसवार ने अपनी पदस्थापना के बाद से इस गांव को समाचार पत्रो एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया में छाये रखने के लिए इस गांव के 40 स्कूली बच्चो में से 39 को कच्ची महँुआ की शराब का आदी बता कर लायंस क्लब के छबिल भाई मेहता काका के कथित प्रयासो से उन बच्चो एवं उनके माता - पिता को नशामुक्ति का पाठ पढा कर उनकी शराब पीने की लत से तौबा करना बता डाला. गांव की स्थिति आज भी ज्यों की त्यों है पूरा का पूरा गांव नशे में धुत मिलेगा. . लायन छबिल भाई को उनके इस तथाकथित काम के लिए इंटर नेशनल लायंस क्लब ने इंटर नेशनल एवार्ड दिया . बी . बी . सी . लंदन से लेकर बैतूल के साप्ताहिक समाचार पत्रो ने छबिल भाई को उनके इस काम के लिए उन्हे पहले पेज पर पहला स्थान दिया . कोठी बाजार में कांतीलाल एण्ड ब्रदर्स के नाम की दुकान के संचालक जगत काका छबिल भाई मेहता और झीटापाटी के स्कूल के प्रधानपाठक सुनील तरकसवार छबिल काका के पड़ौस में रहते है. कोठी बाजार क्षेत्र में रहने वाले दोनो पड़ौसियो की सम्मान की महत्वकांक्षा ने आज पूरे गांव को बदनाम कर डाला . इन दोनो व्यक्तियों द्घारा गांव के बच्चो एवं उनके माता - पिता को दारू पीने से तौबा कराने की बात को लायंस क्लब बैतूल के वर्तमान तथा पूर्व सदस्य एवं पदाधिकारी भ्रामक एवं असत्य बताते है . झीटापाटी ग्राम के पड़ौसी गांव की शासकीय प्राथमिक पाठशाला की महिला शिक्षिका भी स्वंय इस बात से काफी आहत है कि नाम के चक्कर में झीटापाटी गांव के प्रधान पाठक द्घारा परीक्षा केन्द्र पर उनकी पाठशाला के बच्चो को नकल करवा कर 95 प्रतिशत स्कूल का रिजल्ट बनवा लिया . अभी फिर से उन्ही बच्चो की परीक्षा ली जाए तो उक्त प्रधान पाठक शासकीय प्राथमिक पाठशाला झीटापाटी को मँुह छुपाने को जगह नही मिलेगी .
                    ग्राम झीटापाटी की प्राथमिक पाठशाला के कक्षा पहली से लेकर पाँचवी तक के कुल 40 में 39 बच्चो में शराब पीने की तथा शराब पीकर आने की आदत को बड़ी मुश्कील से छुड़वाने के समाचार प्रकाशन के बाद उक्त बहुचर्चित खबर पर सवाल उठाती ग्राम झीटापाटी की श्रीमति विमला जौजे मंगल सिह वाडिया कहती है कि हम स्कूल के मासाब की बात मान भी ले कि इस गांव के अधिकांश लोग शराब बेचने का काम करते है जिस घर में शराब बिकती हो वह घर का आदमी क्यों चाहेगा कि उसकी कमाई का जरीया उसका छोटा बच्चा पी जाए.....! एक बाटल शराब कम से कम अगर दस से बीस से चालिय रूपये में बिकती है तो उस रूपये से कम टाइम का राशन आएगा .....? ऐसे में कौन चाहेगा कि उसका बच्चा एक टाइम भुखा रह कर दारू पीये......!  इसी गांव के 70 वर्षिय हीरा सिंह आत्मज जोगीलाल वाडिया भी इसी बात को आगे बढ़ाता हुआ कहता है कि उसने उसकी 70 साल की उम्र में किसी भी बच्चे को स्कूल शराब पीकर जाते नहीं देखा.....! 30 वर्षिय रमेश आत्मज फकीर उइके का एक भाई शिक्षक है . वह अपनी किराना दुकान से अपने परिवार का भरण पोषण करता है . रमेश भी इस तरह की ख़बरो से काफी दुखी है उसके अनुसार मास्टर अपने आप को श्रेय कुमार घोषित करवा कर अपनी इस कमजोरी को छुपाना चाहता है कि वह स्वंय तो कई बार स्कूल नहीं आता है तथा हर रोज बैतूल से आना - जाना करता है . जब उसकी पदस्थापना झीटापाटी  गांव के लिए हुई है तो उसे इसी गांव में ही रहना चाहिए....!  स्वंय जिला प्रशासन एवं सबंधित शिक्षा विभाग भी इस बात का खंडन करता है कि इससे पहले जब वह प्राथमिक स्कूल शुरू हुआ है तबसे किसी भी शिक्षक ने उन्हे इस गांव के बारे में आज दिनाँक तक लिखित या मौखिक रूप से ऐसी कोई शिकायत की हो जिसमें इस बात का जिक्र हो कि इस गांव के बच्चो को शराब पीकर स्कूल में आने की या उन्हे शराब पीने की लत लग चुकी है ....! सबसे आश्चर्य जनक बात तो यह है कि स्वंय इन दोनो शिक्षको ने भी ऐसी कोई शिकायत लिखित या मौखिक रूप से समाचार छपने के पूर्व नहीं की अगर की होती तो स्वंय शिक्षा विभाग जिला प्रशासन या किसी अन्य सेवाभावी संगठन की मदद से इस गांव के बच्चो के उत्थान के लिए प्रयास करता . सर्व शिक्षा अभियान के तहत खुले जन शिक्षा केन्द्र ससुन्द्रा के अन्तगर्त आने वाले झीटापाटी गांव के स्कूल के बच्चे भले ही नकल करवा कर प्राथमिक परीक्षा में अव्वल नम्बर पर आ गए हो लेकिन उन्ही बच्चो को शराबी बता कर अपने नाम छपवा कर श्रेय कुमार बनने वालो ने यह क्यों नही सोचा कि उनकी तथाकथित सम्मानित होने की लालसा ने झीटापाटी गांव को तो बदनाम किया ही साथ ही उन बच्चो की ऐसी पहचान बना दी तो कभी नहीं मिटने वाली .
इति,

Bangla Deshi

                   बैतूल जिले की 9 ग्राम पंचायते बनी भारत विरोधी गतिविधी का
                केन्द्र पुर्नवास क्षेत्र के 32 शरणार्थी कैम्पो में बंग्लादेशियो की घुसपैठ
                                                    रामकिशोर पंवार
उस दिन वह आदमी कुछ अनजान सा दिखाई दे रहा था . उसके पास जो सामान था वह भी काफी सदेंहास्पद पर था , लेकिन बैतूल जिले की पुलिस की बार - बार सूचना देने के बाद भी पुलिस ने आखिर उसे बैतूल जिले से जाने का मौका दिया . मध्यप्रदेश के बुराहनपुर शहर में पकड़ाया वह बंग्लादेशी मुस्लीम युवक कुछ दिन बैतूल जिले के सारनी ताप बिजली घर , पाथाखेड़ा की कोयला खदान क्षेत्र के अलावा चोपना के पुर्नवास क्षेत्र में भी रहा . जिला प्रशासन आखिर इस बात पर क्यों गंभरी नहीं है कि बैतूल जिले की शाहपुर तहसील के चोपना पुर्नवास क्षेत्र के 32 शरणार्थी कैम्पो में इस समय सैकड़ो ऐसे बंग्लादेशी लोग अपने नाते रिश्तेदारो के पास अनाधिकृत रूप रह है . बंग्लादेश के खुफिया तंत्र के लिए जासूसी करने वाले ऐसे परिवार पर बैतूल जिला प्रशासन का ध्यान जिला पंचायत सदस्य के अलावा भी पुर्नवास क्षेत्र के कई जागरूक लोगो द्वारा करवाने का प्रयास किया था लेकिन जिला प्रशासन आज भी कुंभकरण की निंद्रा से जागने को तैयार नहीं है . सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि विदेशी नागरिको ने पिछले दरवाजे से भारतीय नागरिकता भी प्राप्त कर ली है .  पुर्नवास क्षेत्र के 32 शरणार्थी कैम्पो में यूँ तो 9 ग्राम पंचायत आती है जिनमें बादलपुर , शक्तिगढ़ , गोपीनाथपुर , हीरापुर , नूतनडंगा , बटकी डोह , चोपना, झोली , आमडोह  है . इन्ही ग्राम पंचायतो में अपनी घुसपैठ कर रखे बंग्लादेशियो की सभी ग्राम पंचायतो की वोटर सूचि में नाम एंव मकान बन चुके है . जानकारी जो उपलब्ध है उसके अनुसार बादलपुर ग्राम पंचायत के वार्ड क्रमंाक 13 के वोटर लिस्ट नम्बर पर अंकित मनीशंकर अमृत पुरूष उम्र की नागरिकता पर गांव के लोगो ने सवाल उठाया है . गांव के लोग इस बात को दावे के साथ कहते है कि यह युवक बंग्लादेश का नागरिक है ......?  इसी वार्ड की पुष्पा मनीशंकर महिला उम्र 27 अपने पति के साथ बंग्लादेश से आकर भारत में रहने लगी है . इसी वार्ड के वोटर लिस्ट क्रमंाक 1286 , 1287 , 1288  पर  जिस अर्जून आत्मज अतूल , पुरूष  उम्र 35 वर्ष , वीरेन्द्र आत्मज विजय पुरूष  उम्र 45 वर्ष  तथा गीता पत्नि वीरेन्द्र महिला उम्र 40 वर्ष की नागरिकता पर भी प्रश्र चिन्ह लगाये है . ग्राम पंचायत बादलपुर के ग्राम शांतीपुर के वार्ड क्रंमाक 11 के वोटर लिस्ट क्रंमाक 912 पर जिस प्रह्रïलाद आत्मज परितोष उम्र 23 वर्ष को अपनी नागरिकता की अग्रि परीक्षा देना है उसके साथ पविता आत्मज परितोष पुरूष उम्र 26  वर्ष , प्रकाश आत्मज परितोष पुरूष उम्र 25 वर्ष , दीपक आत्मज परितोष पुरूष उम्र 24 वर्ष , चिनी पत्नि परितोष महिला उम्र 43 वर्ष के अलावा स्वंय परितोष आत्मज सिवचरण पुरूष उम्र 55 वर्ष को यह प्रमाणित करना होगा कि वे कैसे भारतीय नागरिक है.......?
            प्राप्त जानकारी तो यह भी कहती है कि भारत के पड़ौसी देश बंग्लादेश के दर्जनो विदेशी नागरिको ने मध्यप्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी नगरपालिका सारनी के भी कई वाडऱ्ो में अपनी घुसपैठ कर डाली है . वार्ड क्रंमाक 36 में वोटर लिस्ट अनुक्रंमाक 610 से 614 में अंकित परिमंडल आत्मज कृष्णघन के परिवार के 5 सदस्यो को संदेह के दायरे में लिया गया है . इसी तरह वार्ड क्रमांक 35 जयप्रकाश वार्ड का अविनाश आत्मज राजेन्द्र तथा उसकी पत्नि पर भी बंग्लादेशी होने की बात कहीं जा रहीं है . सारनी नगर पालिका के वार्ड क्रमंाक 29 , 30 , सहित तकरीबन आठ दस वार्डो में रहने वाले अपनें ही स्वजातियो पर ऊंगली उठाने वाले जिला पंचायत सदस्य कहते है कि लोग अपने नाते रिश्तेदारो के पास मेहमान नवाजी के बहाने आने के बाद जाने का नाम ही नहीं लेते ........?  पुलिस को ऐसे लोगो की जानकारी दो तो वी सिर्फ जेब भरने का काम करती है . पश्चिमी कोयलांचल पाथाखेड़ा वेस्टर्न कोल फिल्ड अन्तगर्त आने के कारण यहाँ पर बिहारी मुस्लिमो की सर्वाधिक  संख्या है . तथा इस छोटे से कोयलाचंल में सिमी जैसे संगठन की गतिविधयाँ  का संचालित होना तथा वहीं दुसरी ओर बंग्लादेशियों की घुसपैठ आज नहीं  कल किसी बड़ी समस्या को जन्म दे सकती है .
        वैसे भी मध्यप्रदेश एंव बंग्लादेश के बीच पिछले पाँच वर्षो में हुई टेलिफोन एंव मोबाइल के काल्स की अबाध आवागमन ने केन्द्र सरकार के खुफिया तंत्र को हैरान एंव परेशान कर डाला है . मध्यप्रदेश के 22 शहरो को संदेह की नजऱ से देखने वालो के पास इस बात के पक्के प्रमाण है कि इन शहरो में भारत के पड़ौसी बंग्लादेश के सैकड़ो नागरिको ने घुसपैठ कर ली है . मध्यप्रदेश पुलिस ने भी कई ऐसे अपराधियो को पकड़ा है जो कि बंग्लादेशी है  पर अपने ही हथियार से अपनी नाक न कट जाये इस बात से पुलिस कई मामलो का खुलासा नहीं किया . अब सवाल यह उठता है कि प्रदेश के जिन 22 शहरो से बातचीत का दौर शुरू हुआ है वहाँ से क्या जानकारी बंग्लादेश तक पहँुची है .....? मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल  , जबलपुर , इन्दौर ग्वालियर  जैसे महानगरो के बाद अगर गैरत गंज , चोपना  , बादलपुर , सारनी , पाथाखेड़ा , बैतूल  से अगर इंटरनेशनल काल्स  हो रही है तो यह काल्स किसे हो रही है तथा कौन कर रहा है यह भी जानना जरूरी है . क्या मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार को इस विस्फोटक सनसनीखेज $खबर की गहराई पर विचार कर कार्यवाही करने की इच्छा जागृत होगी .
इति,

Badala Jeene Ka Rang

                                                    बदला जीने का रंग और ढंग
                                             यहाँ भी है राखी सावंत और मल्लिका शेरावत........ !
                                                 लेख - रामकिशोर पंवार
पश्चिमी से आई शहरी आधुनिकता का भारत के ग्रामिण अँचलो में इस कदर असर हुआ है कि लोगो को रहन - सहन  उसकी चाल-ढाल तथा रंग- रूप तक बदलने लगा है. गांव के लोग जिन्हे अनपढ़ , गोंड , गवार कह कर उलाहना दी जाती थी आज वही लोग अपने आप को किसी से कम नहींसमझ रहे है. तन से नंगे पेट से भूखे लोगो को अपने आगोश में पूर्ण रूप से जकड़ती आधुनिकता के प्रभाव का सबसे ज्यादा असर आदिवासी समाज पर पड़ा है. मध्यप्रदेश के बैतूल जैसे पिछड़े आदिवासी बाहुल्य जिले के साप्ताहिक बाजारो में आने वाली आदिवासी बालाओं को देखने के बाद उनके रंग-ढंग में आए अमूल चूल परिवर्तन ने व्यापारियो की चंादी कर दी है. साप्ताहिक बाजारो में नकली और घटिया सामग्री को मंहगे दामो वाली बता कर इस समाज की अशिक्षा का भरपूर फायदा उठा कर जहाँ एक ओर लोग मालामाल हो रहे है वही दुसरी ओर नकली मेहनतकश अशिक्षित समाज उपभोक्ता अधिनियमो को न जानने की वजह से ठगी का शिकार बन रहा है. साप्ताहिक बाजारो में अकसर देखने को मिलता है कि हर दुसरी - तीसरी दुकान नकली माल से भरी रहती है. नकली माल का इन लोगो के तन से लेकर मन तक बुरा असर पड़ा रहा है. सौंदर्य विशेषज्ञ जुही अग्रवाल कहती है कि बैतूल जिले के साप्ताहिक बाजारो में बिकने वाली इन्दौर मेड सौंदर्य क्रीम एवं अन्य सामग्री चेहरे से लेकर शरीर के विभिन्न अंगो पर बुरा प्रभाव डालती है. घटिया किस्म की लिपीस्टीक से होठो पर दाग पड़ जाते है. कई बार तो यह देखने में आया हे कि चेहरो पर भी सफेद दाग दिखाई पडऩे लगते है. सुश्री जुही मानती है कि आदिवासी समाज की युवतियाँ अपने सौंदर्य पर आजकल कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगी. आज के आदिवासी बालाए भले ही विश्व सुदंरी एश्वर्या राय को नहीं जानती हो पर वे अपने आप को एश्वर्या से कम भी नही समझती है. आज यही वजह है कि इन युवतियों के अपने रूप सौदंर्य के प्रति बढ़ते शौक ने उन्हे आज अपनी पारम्परीक वेशभुषा और संस्कृति से कोसो दूर कर दिया है. ग्रामिण अंचलो में बसे आदिवासी परिवार के नौजवान लड़के व लड़कियां दोनों ही कम उम्र से ही हाथ मजदूरी पर ठेकेदारों के पास काम करने के लिए जाने लगते है. मेहनतकश इस समाज की काम के प्रति बढ़ती लगन ने उन्हे हर मोर्चे पर लाकर खड़ा किया है.
        सदियो से आदिवासी समाज की युवतियो एवं महिलाओं ने सोने के जेवर के स्थान पर चांदी के जेवरो को सबसे उपयोग में लाया है. चंादी एवं गीलट  (खोटी चांदी) के ही सबसे अधिक जेवर खरीदने वाली इन युवतीयो के शरीर पर गले से लेकर पंाव तक दस हजार रूपये तक के जेवर लदे रहते है. उक्त जेवरो को केवल साप्ताहिक बाजारो एवं किसी कार्यक्रम में पहन कर आने वाली इन युवतीयो का शौक भी बदलता जा रहा है. बाजारो में अब तो कई युवतीयो को कोका कोली और पेप्सी पता देख आप भी हैरत में पड़ जाएगें कि दुसरो का अनुसरण करने वाली ए युवतियाँ आखिर किस ओर भागी जा रही है. आदिवासी समाज की युवतियाँ शादी के पहले भी नाक में नथ और कान में चांदी की बाली पहन लेती है. इन युवतियो को देखने के बाद आप एक पल में यह पता नही लगा सकते कि कौन शादी शुदा है और कौन कुवारी ! वे भले ही तन -मन और धन से गरीब है पर उनके शौक ने उन्हे कहीं का नही छोड़ा है. इनके द्वारा पहने गए आभुषणो के बारे में पगारिया ज्वेलर्स के संचालक नीतिन कहते है कि यह समाज सबसे इमानदार और वादे का पक्का है. उनका यह कहना था कि इस समाज की अज्ञानता का लोग भले ही फायदा उठा ले पर आज सबसे अधिक ग्राहक इसी समाज के साप्ताहिक बाजारो एवं तीज त्यौहार पर खरीदी- बिक्री कने के लिए आते है. अब समय की कहिए या आधुनिकता का असर अब इस समाज की महिलाओ का हमेल  (जिसके सिक्को की माला भी कहते है . ) हस , पैर पटटी, शादी की कड़ी, पायल, बाखडिय़ा, सरी, सहित कई प्रकार आभुषण को पहन कर साप्ताहिक बाजारो एवं शादी विवाह के कार्यक्रम में जाती है. राजश्री से लेकर पान पराग तक खाने वाली इन युवतियो ने सप्ताह में एक बार दोमट मिटटी से नहाने के बजाय लक्स और रेक्सोना से नहाना शुरू कर दिया है. गोदना आज भी इनकी संस्कृति का अंग है जिसे वह नहीं छोड़ सकी है.
            बैतूल जिले में रोजगार के सबसे बड़े केन्द्र पाथाखेड़ा कोयला खदान हो या सारनी ताप बिजली घर या फिर बहार की. इन खदानों से निकलने वाले कोयले को ट्रकों में भरना और खाली करने का काम करने वाली रेजा (आदिवासी युवतीयां) माली, जिस्मानी व दिमागी शोषण का शिकार होती है. अपनी मेहनत की मजदूरी लेने वह साप्ताहिक बाजारों के दिनों में जाती हैं. अकसर कई ठेकेदार भी इन को आसपास लगने वाले साप्ताहिक बाजारों के दिनों में जाती हैं. अकसर कई ठेकेदार भी इन को आसपास लगने वाले साप्ताहिक बाजार के दिनों में ही मजदूरी का रूपया देते हैं.  दिन भर काम करने वाली आदिवासी युवतीयो को जब हाथ में मजदूरी मिलती है तो उन का चेहरा खिल उठता है . हफ्ते के आखिरी दिन जिस गांव, शहर में बाजार लगता है, वहां पर टोलियों में नाचती गाती ये आदिवासी औरतें खाना - पीना छोड़ कर अपने रूप श्रंगार एवं पहनावे की चीजों पर टूट पड़ती हैं . शहरी चकाचौंध में रच बस जाने की शौकीन ये आदिवासी युवतीयाँ अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को लिपिस्टक , नेलपालिश, पाऊडर, बिंदिया, क्रीम पर खर्च करती हैं . कभी पोण्डस का पाऊडर खरीदने वाली युवतीयाँ आजकल क्रीम  की मांग करने लगी है. साप्ताहिक बाजारो में अकसर देखने को मिलता है कि हर दुसरी - तीसरी दुकान नकली और मिलते - जुलते नाम और माल से भरी रहती है. नकली माल का इन लोगो के तन से लेकर मन तक बुरा असर पड़ा रहा है. सौंदर्य विशेषज्ञ जुही अग्रवाल कहती है कि बैतूल जिले के साप्ताहिक बाजारो में बिकने वाली इन्दौर मेड सौंदर्य क्रीम एवं अन्य सामग्री चेहरे से लेकर शरीर के विभिन्न अंगो पर बुरा प्रभाव डालती है. घटिया किस्म की लिपीस्टीक से होठो पर दाग पड़ जाते है. कई बार तो यह देखने में आया हे कि चेहरो पर भी सफेद दाग दिखाई पडऩे लगते है. सुश्री जुही मानती है कि आदिवासी समाज की युवतियाँ अपने सौंदर्य पर आजकल कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगी. आज के आदिवासी बालाए भले ही विश्व सुदंरी एश्वर्या राय को नहीं जानती हो पर वे अपने आप को एश्वर्या से कम भी नही समझती है. आज यही वजह है कि इन युवतियों के अपने रूप सौदंर्य के प्रति बढ़ते शौक ने उन्हे आज अपनी पारम्परीक वेशभुषा और संस्कृति से कोसो दूर कर दिया है.
             बैतूल जिले के एक प्रमुख प्रेस फोटोग्राफर और पत्रकार हारून भाई के शब्दो में इन आदिवासी बालाओं का शौक फोटो  खिंचवाना और हफ्ते में एक दिन आस पड़ोस में पडऩे वाले साप्ताहिक बाजार के दिनों में अच्छे कपड़े पहन कर मद मस्त होकर नाचना - गाना होता है . इस दिन ए युवतियाँ खूब रूप श्रंगार करने के साथ - साथ अपनी सखी सहेली को उत्प्रेरित भी करती है . नए समाज और नई क्रांति का आदिवासी समाज पर काफी असर पड़ा है. आज भी उन्मुक्त सेक्स के मामले अन्य समाज से दो कदम आगे रहे इस समाज के परिवारों में सेक्स को लेकर कोई बंदिश नही है. परिवार की ओर से मिली छूट का आदिवासी समाज की लड़कियां अपनी जात के युवकों के साथ भरपूर फायदा उठाती हैं . यह एक कटू सत्य अपनी जगह काफी मायने रखता है कि इन युवतीयो के फोटोग्राफी के शौक के चलते कई घरो के चुल्हे जलते है.
        कुछ साल पहले तक देशी काटन के लुगड़े और फड़की से अपने शरीर को ढ़कनी वाली युवतीयाँ अब अपने गांव के आसपास लगने वाले साप्ताहिक बाजारो में अपने लिए ब्रा और पैन्टी की मांग करने लगी है. बैतूल जिले के विभिन्न साप्ताहिक बाजारो में कपड़े की दुकान लगाने वाले कन्हैया के अनुसार बाजारो में अब देशी सूती - काटन के लुगड़ो और फड़की के स्थान अब उन्हे पोलीस्टर की साडिय़ो के शौक ने घेर रखा है. आज यही वजह है कि गोंडवाना क्षेत्रो के साप्ताहिक बाजारो से सूती- काटन के कपड़ो की मांग कम होती जा रही है. अपने ऊपरी तन पर ओढऩे वाली फड़की के प्रति इन आदिवासी बालाओं की मांग में आई कमी के कारण इन फड़की को बनानें वाले कई छीपा जाति के लोग बेरोजगार हो गए है तथा उनका पुश्तैनी व्यवसाय भी लगभग बंद होने की कगार पर है. बैतूलबाजार के छीपा जाति के परमानंद दुनसुआ कहते है कि एक जमाना था जब हमारे घर के बुढ़े से लेकर बच्चे तब तक हर दिन कहीं न कही लगने वाले साप्ताहिक बाजारो में आने वाली मांग की पूर्ति के लिए काम करके थक जाते थे लेकिन आज हमे अपने पुश्तैनी व्यवसाय के बंद होने की स्थिति में दुसरो के घरो पर काम करना पड़ रहा है
         फिल्मी संस्कृति का इन आदिवासी आलाओं पर इतना जबरदस्त असर पड़ा है कि ए टाकीजो में फिल्मे देखने के बजाए आजकल अपने घरो के लिए वी.सी.डी. पर दिखने वाली फिल्मो की सी.डी. खरीदने लगी है. आजकल गांवो में भी हजार दो हजार में बिकने वाले सी.डी. प्लेयरो ने गांव के लोगो को टाकिजो से दूर कर रखा है. मुलताई की कृष्णा टाकिज के संचालक कहते है कि पहले हर रविवार एवं गुरूवार साप्ताहिक बाजारो के दिन हमारी टाकिजो में शहरी दर्शको के स्थान पर गांव के ग्रामिण लोग ज्यादा आते थे. इनमें आदिवासी युवतीयो की संख्या सबसे अधिक होती थी लेकिन अब तो हमें खाली टाकीज में भी मजबुरी वश शो करने पड़ रहें है. ग्रामिण क्षेत्रो में आदिवासी समाज में आए बदलाव पर शोध करने वाली अनुराधा के अनुसार घर में दो वक्त की रोटी को मोहताज इन आदिवासी युवतीयो को पश्चिमी स़स्कृति ने अपने आगोश में ले लिया है. वे मानती है कि जिनके शरीर पर पहनने के लिए ढंग के कपड़ें नही होते थे वे ही आजकल भड़किले कपड़ो को पहनने लगी है. आदिवासी समाज में आ रहे बदलवा का ही नतीजा है कि ए किसी के भी चक्कर में पड़ जाती है.आदिवासी महिलाओं के साथ होने वाले यौन प्रताडऩा सबंधी अत्याचार पर अधिवक्ता अजय दुबे की राय यह है कि न्यायालय तक आने वाले मामले की तह तक जाने के बाद यह कहा जा सकता है कि लोभ और लालच की शिकार बनने वाली युवतीयाँ अपने केस के फैसले के समय भी लोभ लालच का शिकार बन जाती है. पैसो के बढ़ती भूख और उन पैसो से केवल अपने रूप श्रंगार तथा एश्वर्या से कम न दिखने की चाहत ही इन आदिवासी युवतीयो के जीवन में अमूल चूल परिवर्तन ला रही है.  सेवानिवृत वनपाल दयाराम भोभाट के अनुसार मैने अपने वन विभाग की पूरी नौकरी इस समाज के बीच बिताई है इस कारण मैं यह बात दावे के साथ कह सकता हँू कि इस समाज में आए बदलाव के पीछे गांव - गांव तक पहँुच चुकी टी.वी. और फिल्मी संस्कृति काफी हद तक जवाबदेह है. आपके अुनसार इन लोगो को फिर से उनकी संस्कृति के से जोडऩा होगा. अन्यथा हमें भी किताबों में ही पढऩे को मिलेगा कि आदिवासी ऐसे होते थे.
इति,

School Chale Hum

                               आखिर अपने बच्चो को क्यों भेजे स्कूल हम
                         जब पाँचवी के बच्चो को नहीं मालूम की कौन थे महात्मा गांधी ...?
                                                        रामकिशोर पंवार 
 '' दे दी हमें आजादी बिना खडग़ - बिना ताल , साबरमति के संत तूने कर दिया कमाल ........! ''  जागृति फिल्म का यह गाना सालाना शिक्षा सत्र में 2 अक्टुबर गांधी जयंती  , 26 जनवरी स्वाधिनता दिवस , 30 जनवरी शहीद दिवस एवं 15 अगस्त आजादी की वर्षगांठ पर याने कुल मिला कर चार बार शासकीय कार्यक्रमो में अनिवार्य रूप से अवश्य बजाया जाता है। कक्षा पहली से लेकर पाँचवी तक पढऩे जाने वाले बच्चो को माता - पिता - नाते - रिश्तेदार तक एक रूपये से लेकर सौ रूपये तक देते है। उसकी जेब रूपयो और सिक्को से भरी होने के बाद भी उस कक्षा पाँचवी में पढऩे वाले बच्चो को जब यह तक पता नहीं कि सिक्के में - रूपये में - गांव - गली - मोहल्ले - सार्वजनिक स्थल पर हाथ में लकड़ी थामे - लंगोट धारक व्यक्ति कौन है ......? तब ऐसे स्कूलो में बच्चो को सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूल चले हम का नारा देकर स्कूल भिजवाने का क्या औचित्य.......? मध्यप्रदेश में सर्व शिक्षा अभियान के तीह गांव - गांव - गली - गली में आंगनवाड़ी से लेकर प्रायमरी स्कूल खोलने वाले सरकारी तंत्र के मँूह पर करारा तमाचा मारती यह हकीगत आजादी की 61 वीं साल गिरह के एक सप्ताह पूर्व सामने आई । देश की पहली महिला राष्टï्रपति महामहिम श्रीमति प्रतिभाताई देवी सिंह शेखावत पाटील की ससुराल अमरावती जाने वाले बैतूल - अमरावति राष्टï्रीय राजमार्ग पर स्थित बैतूल जिले की भैसदेही तहसील की गुदगांव सहित एक दर्जन उन आदिवासी बाहुल्य एवं सामान्य वर्ग की आरक्षित ग्राम पंचायतो के आधा दर्जन से अधिक सरकारी एवं गैर सरकारी प्रायमरी स्कूलो के बच्चो के नैतिक एवं बौद्घिक ज्ञान को ढुढंने गये पत्रकारो के एक दल के सामने आई इस कड़वी सच्चाई का माकूल जवाब किसी के पास नहीं है। सरकारी स्कूलो में भर्राशाही के चलते कई पालक अपने बच्चो को प्रायवेट स्कूलो में पढऩे भेजते है लेकिन गुदगांव के उस प्रायवेट स्कूल की प्रायमरी तक शिक्षा देने का दांवा करने वाली शिक्षण संस्थान के पास भी इस प्रश्र का उत्तर नहीं था कि उनके स्कूल के बच्चो को यह क्यों नहीं पता कि आखिर महात्मा गांधी कौन थे.....? कुंबी समाज बाहुल्य इस गांव के सरकारी भवन में लगने वाले प्रायमरी स्कूल की केजी वन से स्टैण्र्ड फाइव तक के किसी भी बच्चे ने नहीं बताया कि गांधी जी कौन थे.....? इससे बड़ी शर्मनाक बात और क्या होगी कि इस स्कूल की संचालिका और शिक्षिकाओं से जब पत्रकारो के दल का प्रतिनिधित्व कर रहे है बैतूलवी पत्रकारिता के पितृ पुरूष एवं जिला प्रेस क्लब बैतूल के अध्यक्ष हारूण भाई धुआँवाला ने जब इस सवाल का जवाब चाहा कि '' क्या उनके स्कूल में गांधी जयंती या शहीद दिवस नहीं मनाया जाता.....?'' इसी तरह गुदगांव आरटीओ बेरीयर के पास स्थित सरकारी प्रायमरी स्कूल के बरसो से टिके प्रधान पाठक से सवाल किया कि ''उनके प्रायमरी स्कूल के बच्चो को आखिर क्यों नहीं मालूम की महात्मा गांधी आखिर कौन थे.....?'' सवाल का जवाब कुछ अजीबो - गरीब देते हुये प्रधान पाठक ने दो कमरे में लगने वाले पहली से लेकर पाँचवी तक के स्कूल के बच्चो को पढ़ाना अपनी नौकरी या मजबुरी नहीं बल्कि शौक बताया....... आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले इस युवक का कहना था कि '' वह घर से सम्पन्न है हजार दो हजार की नौकरी वह कोई पेट के लिए नही बल्कि अपने शौक और मास्टरी रौब को झाडऩे के लिए कर रहा है .......!'' एक दर्जन से अधिक पत्रकारो के इस दल के सामने ग्रामिण भारत की शिक्षा व्यवस्था की पोल जब परत दर परत खुलने लगी तो अनेको रहस्यो का पर्दाफाश हुआ।  भैसदेही - आठनेर तहसील के महाराष्ट की अंतरराज्यीय सीमा से लगे इन गांवो की शिक्षा पूर्ण तरह खण्डहर की शक्ल ले चुकी है। बैतूल से जाते समय पत्रकारो के दल ने जिन गांवो के स्कूली बच्चो का नैतिक एवं बौद्घिक ज्ञान लिया उन गांवो में खेड़ी , झल्लार , सिमोरी , सराड़ , केरपानी , बोरगांव , मच्छी , झल्लार , विजयग्राम , सांवलमेढ़ा , कोथलकुण्ड , बोरकुण्ड , खोमई , धाबा , सातनेर , हिवरा , चिचोला ढाना , बडग़ांव , नवापुर , गुणखेड़ , वडाली , जामगांव , धामणगांव , ठेसका , मालेगांव , बरहापुर , सिरजगांव , भैसाघाट , महारपानी , राक्सी , धनोरा , धामोरी ,का नाम प्रमुख है। सबसे आश्चर्य जनक बात जो देखने को मिली वह यह थी कि बच्चो को यह नहीं मालूम कि भगवान राम राजा थे या प्रजा.....? विद्या की देवी सरस्वती की पूजा कब और क्यो होती है......? बैतूल जिले का कलैक्टर कौन है.......? जिले का सासंद कौन है.......? कुछ तो ऐसे भी प्रायमरी स्कूल मिले जहाँ पर प्रधान पाठको तक को यह नहीं मालूम कि प्रदेश का स्कूली शिक्षा मंत्री कौन है......?  ग्राम पंचायत राक्सी में गांव का सरपंच कौन है इस बात का पता गांव के स्कूल के प्रधान पाठक को नहीं मालूम......? प्रधान पाठक इस अज्ञानता का सालीट जवाब देते है कि जब सरपंच की जगह उप सरपंच ही गांव की पूरी बागडोर चला रहा हो तब मुझे क्या गांव के अधिकांश लोगो को भी नही मालूम कि गांव का सरपंच कौन है.....?  प्रायमरी पाठशाला झल्लार की कन्याशाला की प्रधान पाठक मानती है कि जो बौद्घिक ज्ञान उन्होने पाया था आज वह वे इन बच्चो को नहीं दे पा रहे है। मास्टरो को सरकार ने चपरासी बना रखा है। प्रदेश की अधिकांश योजनाये लगता है मास्टरो के भरोसे ही चल रही हो.....? देश के प्रधानमंत्री - राष्टपति का नाम तो पुछना ही मूर्खता होगी क्योकि जिन प्रायमरी के स्कूलो के बच्चो को आज तक यह नहीं पता कि बैतूल जिले में कितनी तहसील है.....? उनका विधायक कौन है........? कई स्कूल के बच्चो को तो अपने शिक्षक - शिक्षिका का तक नाम तक नहीं मालूम ऐसे स्थिति में पूरे गांव की ही नही जिले एवं प्रदेश तथा देश के नैतिक एवं बौद्घिक स्तर का पता खुदबखुद लग जाता है।

Bhikhariyo Ka Gaw

                            भिखारियो का गोकुल ग्राम रानाडोंगरी जिनके
                                 रहवासियो के भीख मांगना मजबुरी नही पेशा है.........! 
                                                    रामकिशोर पंवार
 भगवान श्रीकृष्ण के यदुवंश में जन्मे ग्वाले जाति के बाबूलाल गौर ने अपने पूर्वज श्रीकृष्ण के गोकुल ग्राम की परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए मध्यप्रदेश में गोकुल ग्रामो की स्थापना का जो बीड़ा उठाया है वह नि:सदेंह तारिफे काबलि है. प्रदेश के हर जिले में बनने वाले इन गोकुल ग्रामो के रहवासियो के लिए हर प्रकार की सुख सुविधाओं का जाल बिछाने में श्री गौर ने कोई कमी नही छोड़ी लेकिन बैतूल जिले के राना डोंगरी गोकुल ग्राम के रहवासी बसदेवा जाति के लोग अपने पुश्तैनी भिक्षावृति के धंधे को छोड़ कर मजदूरी करने को तैयार नही है?  यूं तो भारत में ना- ना प्रकार के विचित्रताओं से गांवो के बारे में किस्े कहानियाँ सुनने को मिलती है. बैतूल जिले का आमला विकासखण्ड का यह गांव पिछले  दस दशक से यहाँ की मूल आबादी बसदेवा जाति की वजह से देश दुनिया में चर्चित खबरो के रूप में जाना पहचाना जाता है. इस गांव के स्वस्थ नौजवान से लेकर बुढ़े लाचार व्यक्ति तक भगवान राम का नाम लेकर भीख मांगते है. यूँ तो आपने कई गांव देखे होंगे और उनसे जुड़े तमाम किस्से कहानियाँ सुनी होंगी, लेकिन इन सब सब से हट कर अपनी विचित्रता के लिए शासन की महत्वाकंाक्षी योजना को कालिख पोतने वाले गांव के बारे में आपने न तो सुना होगा और न ऐसा कारनामा देखा होगा? क्या आपने ऐसा गांव देखा है जहां के लोगों का पेशा भीख मांगना है? जिस गांव की आबादी की भिक्षावृत्ति मजबुरी न होकर पुश्तैनी खानदानी व्यवसाय है ऐसे गांव को मध्य्रपदेश सरकार ने गोकुल ग्राम घोषित करके इस गांव की आबादी को भीख मांगने की लत से छुटकारा दिलवाने का काम किया है लेकिन वे काम धाम करने को तैयार नही है? इस खबर को पढऩे के बाद चौंकिए मत! मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के आमला विकासखण्ड के राना डोंगरी ग्राम में रहने वाली बसदेवा जाति के लोगो ने अपनी भिक्षावृति की आदत के चलते देश दुनियाँ की सैर कर डाली है. इस गांव के लोग अपने पुश्तैनी व्यवसाय के कारण आज इस गांव के लोग लखपति तक बन गए है कई तो अच्छे भले संपन्न किसान और धनवान होने के बाद भी पेशेवर भिखारी की जिदंगी जी रहे है.बैतूल जिले की मुलताई तहसील में बसा यह छोटा सा गांव है ''राना डोंगरी'' परासिया रेल्वे लाइन पर जंबाड़ा और लालावाड़ी नामक दो रेल्वे स्टेशन के समीप स्थित हैं. इन दोनों स्टेशनों से ठीक पांच किमी पर बसे इस गांव तक पद यात्रा करनी पड़ सकती है. यहाँ पर बसी बसदेवा जाति के  करीब 150 घर हैं. हालाकि इस समुदाय की महिलाए और बच्चे खेती किसानी व पशुपालन का काम करते है. केवल नौजवान और पौढ़ लोग ही भीख मांगने का काम करते हैं. आज भी इन लोगो के घरों में न दूध -दही - घी की कमी है और न रूपए पैसे की! सब कुछ होने के बाद भी दिल है कि भीख मांगे बिना मानता ही नही ! सबसे चौकाने वाली बात यह है कि इस समुदाय के प्रत्येक घर का मुखिया भिखारी बनता है. इस जाति के लोगो के बीच यह आम धारणा बन गई है कि यह प्रथा उनके पूर्वजों की विरासत है और अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें पूर्वजों का श्राप लगेगा ? और यही आम धारणा इनकी भावी पीढ़ी के हाथ में कटारेा और करताल थमा देती है. बसदेवा समुदाय को कुछ लोग अपने आपको ''भजदेवा'' के नाम से पुकारते है. इस संबंध में ऐसी मान्यता है कि इस समुदाय के लोग भगवान श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव के वंशज है. चूंकि ये लोग भीख मांगते समय हाथ में तंबूरा और करताल लिए भगवान का नाम भजते हैं, इसीलिए इनका नाम ''भजदेवा'' पड़ गया, जो बाद में  ''बसदेवा'' हो गया. धोती-कुर्ता और सिर पर शालू की पगड़ी पहन कर देश दुनियाँ में भीख मांगते ए लोग बरसात शुरू होते ही अपने गांव को आ जाते है तथा बरसात के चार महिने अपने परिवार के साथ बीताते समय बांस की सुन्दर टोकरीयाँ बनाते है जो रोटी रखने के काम आती है. उक्त बांस की सुन्दर टोकरीयो को भिक्षावृति के दौरान इस चाहने वाले लोगो को बेच देते है. दिपावली के बाद घर से भीख मांगने निकले ए लोग आठ महिने तक अपने घर परिवार से दूर रहते है.
    मजेदार बात यह है कि इस समुदाय में कोई भी पंडित नहीं होता. परिवार का मुखिया ही सब कुछ होता है. मुखिया की गैर हाजिरी में उसकी पत्नी प्रधान होती है. जिस घर में मुखिया अविवाहित होता है, उसकी अनुपस्थिति में उसकी मां प्रधान होती है. मुखिया के भिक्षाटन पर जाने के बाद घर की महिला प्रधान के नेतृत्व में यह समुदाय खेती-बाड़ी और पशुपालन का कार्य करता है. उसकी देखरेख में ही घर परिवार का कामकाज संपन्न होता है. भिखारी बनकर दर-दर भीख मांगने वाले इस समुदाय का मानना है कि मुखिया के साथ परिवार की दरिद्रता घर से बाहर चली जाती है और जब 8 माह बाद वे भीख मांगकर घर लौटते हैं, तो उनके साथ धन-दौलत आती है, जो साक्षात लक्ष्मी होती है, जिसकी वे पूजा करते हैं. अकसर देखने को मिलता है कि ज्यादातर लोग अंग-भंग हो जाने के कारण भीख मांगते है लेकिन बसदेवा समुदाय के साथ ऐसा कुछ नहीं है, फिर भी वे भीख मांगते है.
    कुछ साल पहले तक भिखारियों का यह गांव रानाडोंगरी बहुत पिछड़ा हुआ  था लेकिन जबसे इस गांव को गोकुल ग्राम घोषित किया है तबसे अब इस गांव तक बिजली,सड़क,पानी और स्वास्थ्य सेवाओं के पहँुचने की कवायद लगाई जा रही है.  अभी इस गांव में शिक्षा के नाम पर सिर्फ एक प्राथमिक स्कूल है, जहां गांव के बच्चे पढ़ते हैं .  गांव के मध्य में इस जाति के पूज्य हरदूलाल बाबा का स्थान यहां इस समुदाय की महिलाएं चैत्र माह के प्रत्येक मंगलवार को आटे का दीपक जलाती हैं तथा व्रत रखती है. चैत्र माह के आखिरी मंगलवार को प्रत्येक घर के लोग हाथ में कटोरा लेकर पांच घरों से भीख मांगकर लाए इसी अनाज में सभी अपने घर के अनाज में मिलाकर भोग बनाते है. इस दिन गांव के किसी भी घरों में भोजन नही बनता है. गांव के सभी लोग हरदूलाल बाबा के के पूजा स्थान पर ही अपने लिए भोजन पकाते है पहला भोग बाबा के स्थान पर ही चढ़ाने के बाद ही सभी लोग इसका सेवन करते हैं. इस कार्यक्रम  में गांव में रहने वाली अन्य जाति के लोग भी इनके इस उत्सव में शिरकत करते है. हालाकि इस दिन यहां किसी भी घर में चूल्हा नहीं जलता.
इति,

Rakh Se Khak Ho Rahi

                       सारणी ताप बिजली घर की जहरीली राख से नर्मदा , तवा , देनवा  
                                           प्रदूषित राख से खाक हो गई दर्जनों गांवों की आबादी
                                                                         रामकिशोर पंवार
अगर आपको परम पूज्यनीय सलिला माँ नर्मदा के स्नान के बाद खुजली होने लगे तो समझ लीजिये कि सारणी ताप बिजली घर की राख ने कमाल कर दिया .विचारणीय प्रश्र है कि सारणी ताप बिजली घर की राख से होशंगाबाद जिले का बहुचर्चित तवा नगर स्थित तवा जलाशय दिन - प्रति दिन तवा नदी में मिल रही राख के कारण वह आने वाले कल में अगर राख का दल-दल बन जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी . बैतूल जिले में स्थित सतपुड़ा ताप बिजली घर सारणी के जिम्मेदार अधिकारियों को कई बार नदी के बहते जल में राख ना बहाने की चेतावनी तक तवा जलाशय की ओर से दी जा चुकी है लेकिन आज भी राख का हजारों टन का बहाव जारी है. बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति के जिला संयोजक पर्याविद एवं बैतूल जिला पर्यावरण वाहिणी के जिला सदस्य ने शासन को देनवा नदी के संरक्षण के लिए 1 करोड़ 35 लाख की एक योजना भेजी थी जिसमें नदी की साफ सफाई तथा निकाली गई राख से रोजगार केन्द्र खोल कर बेरोजगारी को दूर करने का सुझाव भेजा जा चुका है लेकिन पर्यावरण मंत्री बदल गये लेकिन सुझाव पर आज तक किसी प्रकार का अमल नही हो सका . पूर्व वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री सुश्री मेनका से लेकर कमलनाथ तक को सारनी ताप बिजली घर क राख से अपना स्वरूप खो चुकी देनवा नदी की प्रोजेक्ट रिपोर्ट कई बार भेजी जा चुकी है लेकिन राख से खाक हो रहे जल जीवन पर आज तक कोई भी सरकार इस दिशा में ठोस कारगर योजना नहीं बन सकी है . सारणी बिजली घर की चिमनियों से निकलने वाली राख से सारनी के आस पास के दर्जनों गांव प्रभावित है. राख में खाक हो रहा जन जीवन दिन प्रतिदिन मौत की आगोश में समा रहा है. मीलों दूर तक खेतों में जमी राख ने गरीब आदिवासी मजदूर किसानो की फसल के साथ साथ जानवरों का चारा-पानी तक को जहरीला बना दिया है.जब इस ताप बिजली घर की स्थापना हुई थी तब उन आदिवासियों को भरोसा दिलाया गया था कि यह पावर हाउस उनकी जिंदगी में उजाला ला देगा लेकिन उजाला तो दूर रहा इन आदिवासियों की जिंदगी में काला अंधकार छा गया है. इस क्षेत्र के रहवासियो के दुधारू और खेती में उपयोगी जानवर राख युक्त पानी तथा चारा खाकर घुट-घुट कर मर रहे है. वहीं दूसरी ओर उन्हें फसल के उत्पादन के प्रतिशत में लगातार आ रही गिरावट के साथ साथ उनके जीवन यापन पर भी भारी संकट आ खड़ा है. राख ने मानव के शरीर से लेकर जानवरों तक के शरीर में घुस कर उसके फेफड़ों एवं आतों तक में बारीक छेद कर डाले है. एक जानकारी के अनुसार सारणी ताप बिजली घर से प्रति दिन हजारों टन राख पानी के साथ पाईप लाइनों के जरिये बांध में बहा दी जाती है. इससे बांध एक प्रकार से दल-दल बन गया है. जिसमें जानवर धंस कर मर रहे है. राख बांध की लागत करोड़ों में आंकी जाती है लेकिन मजेदार तथ्य यह ह कि इस बांध में इतना पैसा खर्च हो चुका है कि इतनी लागत से कम से कम चार-पांच इस जैसे राख बांध बनाये जा सकते थे.हर साल बरसात में राख बांध तोड़ जाता है ताकि, ओवर फोलो राख का बहाव बांध को ही बहाकर ना ले जाये. जानकार सूत्रों ने बताया कि देनवा, फोपस, तवा एवं नर्मदा तक इस राख से प्रभावित होकर राख युक्त सफेद पानी तथा जहरीले रासायनिक पदार्थो के कारण यह नदियां जहरीली बन रही है. अब अगर आपको नर्मदा के स्नान के बाद खुजली होने लगे तो समझ लीजिये कि सारणी की राख ने कमाल कर दिया. सारणी की राख से तवा नगर का जलाशय राख का दल-दल बनते जा रहा है. सारणी बिजली घर के अधिकारियों को कई बार राख न बहाने की चेतावनी तवा जलाशय की ओर से दी जा चुकी है लेकिन हजारों टन राख का बहाव जारी है. सारणी ताप बिजली घर की राख ने मोरडोंगरी, विक्रमपुरी, धसेड़, सलैया, सीताकामथ, चोर कई गांवों को अपनी आगोश में जकड़ लिया है. सारणी ताप बिजली घर की राख के कारण प्रदूषित नदियों का मामला प्रदेश की विधानसभा में उठाया जा चुका है. बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति तथा देनवा बचाओं समिति के द्वारा की गई पहल पर इटारसी के भाजपा के तत्कालिन विधायक डाक्टर सीताशरण शर्मा ने विधानसभा में जब देनवा नदी के मामले पर शासन को गलत जानकारी देने के लिये लताड़ते हुए देनवा नदी की एक वीडियो कैसेट दी तब जाकर उस समय के राज्य सरकार के पर्यावरण मंत्री को यह स्वीकार करना पड़ा कि प्रदेश की 10 प्रदूषित नदियों में देनवा भी शामिल है. देनवा बचाओं अभियान से जुड़े पर्याविद का कहना है कि शासन ने आज तक दस प्रदूषित नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिये कोई खास कारगार योजना नहीं बनाई है. सारणी की राख से प्रभावित नदियों के लिये महामहिम राष्टï्रपति को हजारों पोस्टकार्ड लिख चुकी बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति ने शासन को देनवा नदी के संरक्षण के लिये 1 करोड़-35 लाख की एक योजना भेजी थी जिसमें नदी की साफ सफाई तथा निकाली गई राख से रोजगार केन्द्र खोल कर बेरोजगारी को दूर करने का सुझाव भेजा था. पूर्व में तत्कालिन वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री सुश्री मेनका से लेकर वर्तमान केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ को तक देनवा नदी की प्रोजेक्ट रिपोर्ट भेजी जा चुकी है लेकिन राख से खाक हो रहे जल जीवन पर आज तक कोई ठोस कारगर योजना नहीं बन सकी है. सारणी की राख को लेकर सतपुड़ा ताप बिजली घर भी चिंतित है लेकिन मंडल के पास ठेकेदारों के राख निकासी के फर्जी बिलों के भुगतान करने के अलावा कोई योजना नहीं है. मंडल प्रतिवर्ष तवा जलाशय एवं राख नाले में राख के निकालने तथा राख बांध के रख-रखाव के साथ साथ बांध की ऊंचाई बढ़ाने के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च करता है. राख बांध के पानी की रिसायक्लीन योजना भी फेल हो गई है. अब सारणी ताप बिजली की राख से प्रभावित ग्रामवासी राख से नष्टï हो रहे जल जीवन से दुखी होकर पलायन करते जा रहे है.अपने पूर्वजो की अनमोल धरोहर को छोड़कर भविष्य को बचाने के लिये गांवों को छोड़कर जाने से इन गांवों में चीखता सन्नाटा इस बात का संकेत देता है कि गांवों में मौत का कहर शुरू हो चुका है यही कारण कि यहां के ग्रामीण पलायन कर चुके है .मध्यप्रदेश पांवर जनरेटिंग कंपनी जो कि पूर्व में एमपीइबी थी जिसकी सतपुड़ा ताप बिजली घर सारनी में प्रस्तावित 10 एवं 11 नम्बर की दो युनिटो के निमार्ण के बाद उससे निकलने वाली राख को संग्रह करने के लिए राखड डेम को बढाये जाने की कार्य योजना को उस समय झटका लग गया जब राखड डेम में आने वाली भूमि के भूस्वामियों ने सरकारी मंशा को मानने से इंकार कर दिया। ग्राम पंचायत धसेड के अजाक प्राथमिक शाला में आयोजित बैठक में विक्रमपुर ,धसेड , सेमरताल , रयावाड़ी , घोघरी , के ग्रामवासी एक साथ बोल उठे कि हम मर जायेगें लेकिन अपने पूर्वजो की जमीन को किसी भी सूरत में खाली नहीं करेगें। बैतूल जिला कलैक्टर एवं मध्यप्रदेश पांवर जनरेटिंग कंपनी की सारनी युनिट के मुखिया की उपस्थिति में  सैकड़ो ग्रामवासियो ने 10 एवं 11 नम्बर की नई युनिटो के निमार्ण के बाद प्रतिदिन निकलने वाली राख के संग्रहण के लिए अधिग्रहित की जाने वाली भूमि के बदले पांवर जनरेटिंग कंपनी द्घारा दी जाने वाली 14 सुविधाओं का प्रस्ताव ठुकरा दिया। सारनी ताप बिजली घर की वर्तमान समय में प्रतिदिन निकलने वाली 70 टन से अधिक राख को पानी में घोल कर पाईप लाईनो के माध्यम से एश बंड तक पहँुचाने के बाद करीब दस किलो मीटर के क्षेत्र में फैले राखड बांध में संग्रहित किया जाता है। हर साल बरसात में सारनी ताप बिजली घर का राखड डेम कहीं न कहीं से फूट जाता है और लाखो टन राख देनवा नदी के सहारे तवा जलाशय पहँुच जाती है। अभी तक पिछले बीस दशक में राखड डेम 38 से अधिक बार क्षतिग्रस्त हो चुका है। सारनी ताप बिजली घर की राख पहले आसमान में उड़ती थी जिससे लगभग 20 से 30 किलोमीटर का क्षेत्र कृषि उपयुक्त भूमि की उपजाऊ क्षमता को निगल चुका है। भारी विरोध के बाद असामानी राख को डेम बना कर संग्रहित करने के बाद भी राख से खाक हुई आबादी एवं कृषि एवं गैर कृषि उपयोगी भूमि पर उगी फसल एवं वनस्पति के बेस्वाद तथा नष्टï हो जाने की चिंता से चिंतित बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति कई बार ग्रामवासियो के दर्द एवं देनवा नदी को बचाने के लिए जन आन्दोलन चला चुकी है। इस बार पुन: पांवर जनरेटिंग कंपनी द्घारा 5 गांवो की सरकारी एवं गैर सरकारी 343 हेक्टर भूमि को अधिग्रहित करना चाहती है। इन 5 गांवो के लगभग 188 किसान परिवारो की जमीने इस राखड बांध के विस्तारीकरण में चली जायेगी। ग्राम पंचायत धसेड में आयोजित बैठक में उपस्थित प्रभावित किसान परिवार एवं उस आश्रित लोगो की भीड ने पांवर जनरेटिंग कंपनी के अफसरो पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुये उन्हे भी खरी - खोटी सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन ग्राम वासियो का आरोप था कि पाथाखेड़ा की कोयला खदानो एवं सारनी के ताप बिजली घर के निमार्ण की बलि चढ़े कई गांवो के मूल निवासियों को भी उस समय हटाने से पूर्व इसी तरह के लालीपाप दिये थे लेकिन उनके साथ वादा खिलाफी की गई। सारनी ताप बिजली घर के विस्तारीकरण की भेट चढ़ा ब्रहमणवाड़ा गांव का उदाहरण देते हुये ग्राम पंचायत की पूर्व सरपंच श्रीमति जीको बाई ने कहा कि कोई भी व्यक्ति या जानवर अपनी मां को नहीं छोडऩा चाहता। यह धरती जिस पर हमारी पीढ़ी दर पीढ़ी जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कार को करती चली आ रही है उसे हम किसी भी सूरत में छोडऩे को तैयार नहीं है। ग्राम पंचायत धसेड के अजाक प्राथमिक शाला में जिला प्रशासन एवं पांवर जनरेटिंग कंपनी के अधिकारियो द्घारा बुलवाई गई समझाइश बैठक में ग्रामिणो का पक्ष काफी उग्र एवं आक्रोषित रहा।

Kapeel Dhara Ke Kuwa

                                   इस बरसात में बैतूल जिले में कपिल मुनि का
                                      श्राप का हश्र भोग 6 हजार 934 ग्रामिण किसान
                                           रिर्पोट - रामकिशोर पंवार
भाजपा शासन काल में शुरू की गई कपिल धारा कूप निमार्ण योजना को इस बरसात में श्राप लगने वाला है। केन्द्र सरकार द्घारा दिये गये रोजगार ग्यारंटी योजना के तहत दिये गये अनुदान से मध्यप्रदेश में शुरू की गई कपिल कूप योजना के तहत बैतूल जिले की दस जनपदो एवं 545 ग्राम पंचायतो में बनने वाले 14 हजार 893 कुओं में से लगभग आधे 6 हजार 934 कुओ में से अधिकांश पहली ही बरसात में धंसक चुके है। इन पंक्तियो के लिखे जाने तक मात्र 2 हजार 477 कुओं का ही पूर्ण निमार्ण कार्य पूरा हो चुका है। राज्य शासन द्घारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के ग्रामिण किसानो की 5 एकड़ भूमि पर 91 हजार रूपये की लागत से खुदवाये जाने वाले कुओं के लिए बैतूल जिला पंचायत एनआरजीपी योजना के तहत मोटे तौर पर देखा जाये तो 91 हजार रूपये के हिसाब से करोड़ो रूपयो का अनुदान केन्द्र सरकार से मिला। ग्राम पंचायत स्तर पर सरपंच एवं सचिव को कपिल धारा कूप निमार्ण की एजेंसी नियुक्त कर जिला पंचायत ने ग्राम के सरंपचो एवं सचिवो की बदहाली को दूर कर उन्हे मालामाल कर दिया है। एक - एक ग्राम पंचायत में 20 से 25 से कपिल धारा के कुओं का निमार्ण कार्य करवाया गया। 24 हजार 75 हजार रूपये जिस भी ग्राम पंचायत को मिले है उन ग्राम पंचायतो के सरपंचो एवं सचिवो ने एनआरजीपी योजना के तहत कार्य करवाने के बजाय कई कुओं का निमार्ण कार्य जेसीबी मशीनो से ही करवाया डाला। आनन - फानन कहीं सरकारी योजना की राशी लेप्स न हो जाये इसलिए सरपंचो ने बैतूल जिले में 545 ग्राम पंचायतो में इस वर्ष 2 हजार 477 कुओं का निमार्ण कार्य पूर्ण बता कर अपने खाते में आई राशी को निकाल कर उसे खर्च कर डाली। हर रोज जिला मुख्यालय पर कोई न कोई ग्राम पंचायत से दर्जनो मजदुर अपनी कपिल धारा योजना के तहत कुओं के निमार्ण की मजदुरी का रोना लेकर आता जा रहा है। अभी तक जिला प्रशासन के पास सरकारी रिकार्ड में दर्ज के अनुसार 337 ग्राम पंचायतो की शिकायते उन्हे अलग - अगल माध्यमो से मिली है। इन शिकायतो में मुख्यमंत्री से लेकर जिला कलैक्टर का जनता तथा सासंद का दरबार भी शामिल है। आये दिन किसी न किसी ग्राम पंचायत की कपिल भ्रष्टïचार धारा के बहने से प्रभावित लोगो की त्रासदी की खबरे पढऩें को मिल रही है। अभी तक 9 हजार 411 कुओं  का निमार्ण कार्य हो रहा है जिसमें से 6 हजार 934 कुओं के मालिको का कहना है कि उनके खेतो में खुदवाये गये कुएं इस बरसात में पूरी तरह धंस जायेगें। दिसम्बर 2010 तक की स्थिति में जिन कुओं का निमार्ण हो रहा है उनमें से अधिकांश के मालिको ने आकर अपनी मनोव्यथा जिला कलैक्टर को व्यक्त कर चुके है। सबसे ज्यादा चौकान्ने वाली जानकारी तो यह सामने आई है कि बैतूल जिले के अधिकांश सरपंचो ने अपने नाते -रिश्तेदारो के नामों पर कपिल धारा के कुओं का निमार्ण कार्य स्वीकृत करवाने के साथ - साथ पुराने कुओं को नया बता कर उसकी निमार्ण राशी हड़प डाली। जिले के कई गांवो में तो इन पंक्तियो के लिखे जाने तक पहली बरसात के पहले चरण मे ही कई कुओं के धसक जाने की सूचनायें ग्रामिणो द्घारा जिला पंचायत से लेकर कलैक्टर कार्यालय तक पहँुचाई जा रही है। हाथो में आवेदन लेकर कुओं के धसक जाने , कुओं के निमार्ण एवं स्वीकृति में पक्षपात पूर्ण तरीका बरतने तथा कुओं के निमार्ण कार्य लगे मजदुरो को समय पर मजदुरी नहीं मिलने की शिकायते लेकर रोज किसी न किसी गांव का समुह नेताओं और अधिकारियों के आगे पीछे घुमता दिखाई पड़ ही जाता है। ग्रामिण क्षेत्रो में खुदवाये गये कपिल धारा के कुओं को डबल रींग की जुड़ाई की जाना है लेकिन कुओं की बांधने के लिए आवश्क्य फाड़ी के पत्थरो के प्रभाव नदी नालो के बोल्डरो से ही काम करवा कर इति श्री कर ली जा रही है। कुओं की बंधाई का काम करने वाले कारीगरो की कमी के चलते भी कई कुओं का निमार्ण तो हो गया लेकिन उसकी चौड़ाई और गहराई निर्धारीत मापदण्ड पर खरी न उतरने के बाद भी सरपंच एवं सचिवो ने सारी रकम का बैंको से आहरण कर सारा का सारा माल ह$जम कर लिया। जिले में एनआरजीपी योजना का सबसे बड़ा भ्रष्टï्राचार का केन्द्र बना है कपिल धारा का कुआं निमार्ण कार्य जिसमें सरपंच और सचिव से लेकर जिला पंचायत तक के अधिकारी - कर्मचारी जमकर माल सूतने में लगे हुये है। भीमपुर जनपद के ग्राम बोरकुण्ड के सुखा वल्द लाखा जी कामडवा वल्द हीरा जी  तुलसी जौजे दयाराम , रमा जौजे सोमा , नवलू वल्द जीवन , तुलसीराम की मां श्रीमति बायलो बाई जौजे बाबूलाल , चम्पालाल वल्द मन्नू के कुओं का निमार्ण कार्य तो हुआ लेकिन सभी इस बरसात में धंसक गये। बैतूल जिला मुख्यालय से लगभग 120 किलो मीटर की दूरी पर स्थित दुरस्थ आदिवासी ग्राम पंचायत बोरकुण्ड के लगभग सौ सवा सौ ग्रामिणो ने बैतूल जिला मुख्यालय पर आकर में आकर दर्जनो आवेदन पत्र जहां - तहां देकर बताया कि ग्राम पंचायत में इस सत्र में बने सभी 24 कुओं के निमार्ण कार्य की उन्हे आज दिनांक तक मजदुरी नहीं मिली। बैतूल जिले की साई खण्डारा ग्राम पंचायत निवासी रमेश कुमरे के परतापुर ग्राम पंचायत में बनने वाले कपिलधारा के कुओं का निमार्ण बीते वर्ष में किया गया। जिस कुये का निमार्ण वर्ष 2007 में पूर्ण बताया गया जिसकी लागत 44 हजार आंकी गई उस कुये का निमार्ण पूर्ण भी नहीं हो पाया और बीते वर्ष बरसात में धंस गया। दो साल से बन रहे इस कुये का इन पंक्तियो के लिखे जाने तक बंधाई का काम चल रहा है लेकिन न तो कुआं पूर्ण से बंध पाया है और न उसकी निर्धारित मापदण्ड अनुरूप खुदाई हो पाई है। इस बार भी बरसात में इस कुये के धसकने की संभावनायें दिखाई दे रही है। रमेश कुमरे को यह तक पता नहीं कि उसके कुआ निमार्ण के लिए ग्राम पंचायत को कितनी राशी स्वीकृत की गई है तथा पंचायत ने अभी तक कितने रूपयो का बैंक से आहरण किया है। ग्राम पंचायत के कपिलधारा के कुओ के निमार्ण कार्य में किसी भी प्रकार की ठेकेदारी वर्जित रहने के बाद भी कुओं की बंधाई का काम ठेके पर चल रहा है। ग्राम पंचायत झीटापाटी के सरपंच जौहरी वाडिया के अनुसार ग्राम पंचायत झीटापाटी में 32 कुओ का निमार्ण कार्य स्वीकृत हुआ है लेकिन सरपंच ने कुओ के निमार्ण के आई राशी का उपयोग अन्य कार्यो में कर लिया। गांव के ग्रामिणो की बात माने तो पता चलता है कि इस ग्राम पंचायत में मात्र 16 ही कुओ का निमार्ण कार्य हुआ। सरपंच जौहरी वाडिया और सचिव गुलाब राव पण्डागरे ने इन 16 कुओ के निमार्ण कार्य में मात्र 6 लाख रूपये की राशी खर्च कर शेष राशी का आपसी बटवारा कर लिया। आर्दश ग्राम पंचायत कही जाने वाली आमला जनपद की इस ग्राम पंचायत में आज भी 16 कुओ का कोई अता - पता नहीं है। पहाड़ी क्षेत्र की पत्थरो की चटटïनो की खदानो का यह क्षेत्र जहां पर 16 कुओ जिस मापदण्ड पर खुदने चाहिये थे नहीं खुदे और जनपद से लेकर सरपंच तक ने 16 कुओ की खुदाई सरकारी रिकार्ड में होना बता कर पूरे पैसे खर्च कर डाले। सवाल यह उठता है कि जहाँ पर पत्थरो की चटटनो को तोडऩे के लिए बारूद और डिटोनेटर्स का उपयोग करना पड़ता है वहां पर कुओ का निमार्ण कार्य उसकी चौड़ाई - गहराई अनरूप कैसे संभव हो गया..? कई ग्रामवासियो का तो यहां तक कहना है कि सरपंच और सचिव ने उनके कुओ की बंधाई इसलिए नहीं करवाई क्योकि पहाड़ी पत्थरो की चटटनी क्षेत्र के है इसलिए इनके धसकने के कोई चांस नहीं है। भले ही इन सभी कुओ की बंधाई सीमेंट और लोहे से न हुई हो पर बिल तो सरकारी रिकार्ड में सभी के लगे हुये है। इस समय पूरे जिले में पहली ही रिमझीम बरसात से कुओं का धसकना जारी है साथ ही अपने कुओ पर उनके परिजनो द्घारा किये गये कार्य की मजदुरी तक उन्हे नहीं मिली। ग्रामिणो का सीधा आरोप है कि महिला अशिक्षित एवं आदिवासी होने के कारण उसका लड़का ही गांव की सरपंची करता रहता है। राष्टपिता महात्मा गांधी का पंचायती राज का सपना इन गांवो में चकनाचूर होते न$जर आ रहा है क्योकि कहीं सरपंच अनपढ़ है तो कई पंच ऐसे में पूरा लेन - देन सचिवो के हाथो में रहता है। अकसर जिला मुख्यालय तक आने वाली अधिकांश शिकायतो और सरंपचो को मिलने वाले धारा 40 के नोटिसो के पीछे की कहानी पंचायती राज में फैले भ्रष्टï्राचार का वाजीब हिस्सा न मिलने के चलते ही सामने आती है। बैतूल जिले में 545 ग्राम पंचायतो के सरपंचो और सचिव के पास पहले तो साइकिले तक नहीं थी अब तो वे नई - नई फोर व्हीलर गाडिय़ो में घुमते न$जर आ रहे है। जिले में सरपंच संघ और सचिव संघ तक बन गये है जिनके अध्यक्षो की स्थिति किसी मंत्री से कम नहीं रहती है। अकसर समाचार पत्रो में सत्ताधारी दल के नेताओं और मंत्रियो के साथ इनके छपने वाले और शहरो में लगने वाले होर्डिंगो के पीछे का खर्च कहीं न कहीं पंचायती राज के काम - काज पर ऊंगली उठाता है। बैतूल जिले में अभी तक अरबो रूपयो का अनुदान कपिलधारा के कुओ के लिए आ चुका है लेकिन रिजल्ट हर साल की बरसात में बह जाता है। अब राज्य सरकार केन्द्र सरकार से मिलने वाले अनुदानो का अगर इसी तरह हश्र होने देगी तो वह दिन दूर नहीं जब पंचायती राज न होकर पंचायती साम्राज्य बन जायेगा जिसके लिए बोली लगेगी या फिर गोली......